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Ae kavita

ढूंढते ढूंढते वह समां, ग़ुम गयी हूँ मैं  लिख पाऊं जब मैं हाल अपना, हो के मगन युं  कमी थी तो बस कागज़ कलम उठाने की,  एहसासों को शब्दों मैं उतारने की!  आज तुमसे मिलके फिर जी उठी हूँ मैं! ऐ कविता तेरे लिए कुज यूँ तरसी हूँ मैं! वक़्त मिलता नहीं,  होश कल का नहीं,  कैसे लिखुं, क्या लिखुं  इन् विचारों मैं बस डूब सी गयी थी,  ऐ कविता तुमसे बिछड़कर कुज रूठ सी गयी थी!  आज मुस्काई हूँ मैं,  तुमसे मिलने की ख्वाहिश मैं,  खुद से ही शर्मायी हूँ मैं!  ऐ कविता तुम्हें शब्दों मैं पिरो के,  आज मुददतों बाद आईने से मिल पायी हूँ मैं!

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